पंजाब विधानसभा चुनाव के अवसर पर हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी का आह्वान, 20 जनवरी, 2017
पंजाब विधानसभा के चुनावों की घोषणा ऐसे समय पर की गई है जब पंजाब का बहुत ही अंधकारमय भविष्य है। पांच नदियों से सिंचित इस अति-उपजाऊ धरती के किसान खुदकुशी करने को मजबूर हो रहे हैं। कई किसान अपनी भूमि बेचकर देश के अन्य भागों या विदेशों में पलायन कर रहे हैं। उद्योग अभी भी बहुत कम विकसित हैं तथा बेरोज़गारी फैली हुई है। पंजाब के नौजवान राजनीति के अपराधीकरण तथा राज्य द्वारा आयोजित नशीले पदार्थों के व्यापार से बहुत बुरी तरह पीड़ित हैं।
हिन्दोस्तान के बड़े पूंजीपतियों और पंजाब के बड़े जमींदारों ने मिलकर इस धरती को खूब लूटा है। उन्होंने पंजाब राष्ट्र को भारी कर्ज़ों के बोझ तले दबा दिया है और इस दुखद स्थिति में पहंुचा दिया है कि अधिक से अधिक लोगों को वहां से पलायन करना पड़ रहा है। जबकि देश की आबादी को भोजन खिलाने तथा देश की सीमाओं की रक्षा करने में पंजाब के लोगों का बहुत बड़ा योगदान रहा है, तो उनके राष्ट्रीय अधिकारों और मानव अधिकारों को पांव तले कुचल दिया गया है और आज भी कुचला जा रहा है।
पंजाब राष्ट्र को 1947 में धर्म के आधार पर बांटा गया था। 60 के दशक में उसे फिर से, तथाकथित भाषा फार्मूला के आधार पर बांटा गया था। 80 के दशक में, बड़े सुनियोजित तरीके से पंजाब के लोगों के राष्ट्रीय अधिकारों के लिये संघर्ष को सांप्रदायिक रंगों में पेश किया गया था। राजकीय आतंकवाद और सांप्रदायिक बंटवारे को पंजाब पर थोप दिया गया। हजारों-हजारों नौजवानों को मुठभेड़ों में मार गिराया गया। हिन्दोस्तानी सरकार ने स्वर्ण मंदिर पर हथियारबंद हमला किया। नवंबर 1984 में राज्य द्वारा सिखों का जनसंहार आयोजित किया गया।
स्वाभाविकतः, अलग-अलग राजनीतिक पार्टियां, जो अब तक पंजाब की सरकार को संभालती आई हैं, वे अगले महीने में होने वाले चुनावों से पूर्व, लोगों को तरह-तरह के वादे कर रही हैं। परन्तु हमारे जीवन के अनुभव ने साफ दिखाया है कि समय-समय पर किये गये इन चुनावों से समस्याओं का कोई समाधान नहीं होता। कांग्रेस पार्टी की जगह पर अकाली दल-भाजपा गठबंधन के आने से राजकीय आतंकवाद के पीड़ितों को कोई इंसाफ नहीं मिला। पंजाब के नौजवानों के कातिलों में से किसी को भी आज तक सज़ा नहीं दी गई है।
चुनावों के ज़रिये सरकार संभालने वाली पार्टी को बदल देने से पूंजीवादी शोषण की व्यवस्था या हिन्दोस्तानी संघ के दमनकारी स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं होता है। अर्थव्यवस्था और राज्य पर लगभग 150 इज़ारेदार पूंजीवादी घरानों का वर्चस्व बरकरार रहता है। सत्ता में बैठी पार्टियां चाहे कितनी भी बार एक दूसरे की जगह ले लें, परन्तु सिर्फ कुछ मुट्ठीभर अति-अमीर घराने ही साल-दर-साल और अमीर होते रहते हैं। मज़दूरों और किसानों की हालत बद से बदतर होती रहती है।
भ्रष्टाचार-विरोध का झंडा फहराते हुये, भाजपा नीत मोदी सरकार ने नोटबंदी लागू कर दी है। इसका असली इरादा है इज़ारेदार पूंजीपतियों की लालच को पूरा करना। यह मेहनतकश लोगों की रोज़ी-रोटी और अधिकारों पर एक पैशाचिक हमला है। कुछ गिने-चुने इज़ारेदार पूंजीवादी घरानों के निजी हितों को पूरा करने के लिये इतना प्रमुख सार्वजनिक फैसला लेना - क्या यह भ्रष्टाचार की हद नहीं है?
हिन्दोस्तानी राज्य के अंदर भ्रष्टाचार इतनी गहराई तक व इतने विस्तृत पैमाने पर फैला हुआ है कि इस राज्य पर शासन करने वाली किसी भी पार्टी द्वारा चलाया गया भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान बहुत बड़ा धोखा ही है। जनता से लूटे गये धन पर कुत्तों जैसी आपसी लड़ाई के दौरान, प्रतिस्पर्धी पूंजीवादी पार्टियां और दल “भ्रष्टाचार-विरोध” के अभियान चलाते रहते हैं।
पंजाब के लोगों!
आप एक महान क्रांतिकारी परंपरा के वारिस हैं। यह आज से लगभग सौ वर्ष पहले, बर्तानवी उपनिवेशवादी शासन का तख्तापलट करने के लिये सशस्त्र विद्रोह आयोजित करने की ग़दरियों की परंपरा है। जब हम कामरेड सोहन सिंह भकना, शहीद करतार सिंह सराभा या शहीद भगत सिंह व उनके साथियों को याद करते हैं, तो याद रखें कि उन सभी ने राष्ट्रीय और सामाजिक मुक्ति के उच्च लक्ष्य के लिये सब कुछ कुर्बान किया था। उन्होंने एक ऐसे हिन्दोस्तान के लिये संघर्ष किया था, जिसमें कोई विदेशी या हिन्दोस्तानी पूंजीपति या जमींदार मजदूरों और किसानों का शोषण और लूट नहीं कर सकेगा, जिसमें मजदूरों और किसानों को अपने श्रम का फल मिलेगा।
ग़दरियों का यह विचार था और उन्होंने यह ऐलान किया था कि हिन्दोस्तान के लोग तभी मुक्त हो सकेंगे जब वे बर्तानवी उपनिवेशवादियों द्वारा स्थापित राज्य के संस्थानों को पूरी तरह मिटा देंगे। उन्होंने मुक्त हिन्दोस्तान का जो नज़रिया पेश किया था, वह सदियों से यहां बसे हुये विभिन्न राष्ट्रों व लोगों के स्वेच्छापूर्ण संघ का नज़रिया था। उन्होंने इस बात को समझा कि प्रतिनिधियों को चुनने की जो राजनीतिक प्रक्रिया बर्तानवी शासक बना रहे थे, उससे हमें कभी मुक्ति नहीं मिल सकती है। उन्होंने एक ऐसे नये राज्य की नींव डालने के लिये संघर्ष किया, जो सभी लोगों के अधिकारों की रक्षा करेगा तथा सभी की खुशहाली और सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।
1947 में ग़दरियों के उस कार्यक्रम और लक्ष्य के साथ विश्वासघात किया गया। बड़े पूंजीपतियों और बड़े जमींदारों ने संविधान लिखने के अधिकार को हड़प लिया। उन्होंने उसी दमनकारी और बंटवारा करने वाले राज्य और राजनीतिक प्रक्रिया को बरकरार रखने का फैसला किया, जिसे बर्तानवी पूंजीपति वर्ग ने हिन्दोस्तान पर शासन करने के लिये स्थापित किया था।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी का यह गहरा विश्वास है कि ग़दरियों का रास्ता ही पंजाब तथा इस उपमहाद्वीप के सभी अन्य राष्ट्रों और लोगों की राष्ट्रीय व सामाजिक मुक्ति का एकमात्र सही रास्ता है। हम ग़दरियों के उस मशहूर वचन का अनुमोदन करते हैं कि: हमारा संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक कुछ मुट्ठीभर लोग, विदेशी या देशी या दोनों का गठबंधन, हमारी जनता के श्रम और संसाधनों का शोषण करते रहेंगे। इस रास्ते से हमें कोई भी हटा नहीं सकता।
सभी तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि आज भी देशी और विदेशी पूंजीपति हमारी जनता के श्रम और संसाधनों का शोषण कर रहे हैं। गोरों के राज की जगह पर एक उतने ही विशिष्ट, जनता से अलग और घमंडी वर्ग का शासन स्थापित हुआ है, जो यह सोचता है कि उन्हें अपने खुदगर्ज़ साम्राज्यवादी मंसूबों को बलपूर्वक आगे बढ़ाने का पूरा अधिकार है जबकि मेहनतकश बहुसंख्या को जानवरों की तरह ही जीते रहना चाहिये।
ग़दरियों का रास्ता अपनाने का मतलब है वर्तमान चुनावी प्रक्रिया के ज़रिये सत्ता में आकर, मेहनतकशों के हित में काम करने के नाम पर, मौजूदे राज्य को संभालने के रास्ते को ठुकरा देना। यह लोगों को धोखा देने का रास्ता है। सच तो यह है कि वर्तमान राज्य का चरित्र उपनिवेशवादी, साम्राज्यवादी और पूरी तरह सांप्रदायिक है। यह राज्य इज़ारेदार पूंजीपतियों की हुक्मशाही को लागू करने का साधन है। इसे मेहनतकश जनसमुदाय के हितों को पूरा करने के लिये इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। वर्तमान राजनीतिक प्रक्रिया जनता से लूटे गये धन का आपस में बंटवारा करने की पूंजीपति वर्ग की लड़ाई का साधन है।
ग़दरियों का रास्ता अपनाने का मतलब है उपनिवेशवादी विरासत से पूरी तरह नाता तोड़कर, एक नई व्यवस्था और राज्य स्थापित करने का राजनीतिक लक्ष्य निर्धारित करना। इसका मतलब है एक नया संविधान लिखना, जो इन असूलों पर आधारित होगा कि (1) संप्रभुता लोगों के हाथ में होगी; (2) सभी की खुशहाली और सुरक्षा सुनिश्चित करना राज्य का फर्ज़ होगा; और (3) हिन्दोस्तानी संघ के सभी घटक राष्ट्रों को आत्म-निर्धारण तथा संघ से अलग होने तक का अधिकार होगा।
मजदूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों को किसी भी चुनाव से पूर्व, अपने उम्मीदवारों का चयन करने का अधिकार होना चाहिये। चुने गये प्रतिनिधियों के हाथों में सारी ताक़त सौंप देने के बजाय, लोगों को इसका सिर्फ कुछ ही हिस्सा सौंपना चाहिये। चुने गये प्रतिनिधि को जवाबदेह ठहराने और उसे किसी भी समय पर वापस बुलाने का अधिकार लोगों के पास होना चाहिये। नये विधान व नीतियां शुरू करने का अधिकार भी लोगों को होना चाहिये। संविधान को फिर से लिखने के अधिकार समेत, सभी बाकी अधिकार लोगों के पास होने चाहियें।
पूंजीवादी इज़ारेदार कंपनियां हमारे देश को खतरनाक, साम्राज्यवादी जंगफरोश रास्ते पर ले जा रही हैं। इसे रोकने के लिये फौरी तौर पर ज़रूरी है कि लोगों के अधिकारों की हिफ़ाज़त में, सभी प्रगतिशील और जनवादी ताक़तें एकजुट हो जायें। फौरी तौर पर यह भी ज़रूरी है कि हर इलाके में, अपनी रोज़ी-रोटी और अधिकारों पर हमलों के खिलाफ़ संघर्ष करते हुये, जन समितियों का गठन किया जाये और उन्हें मजबूत किया जाये।
कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी पंजाब के सभी प्रगतिशील और देशभक्त लोगों से आह्वान करती है कि इस अवसर पर आगे आकर, यह संदेश गांव-गांव तक पहुंचायें, जैसा कि ग़दरियों ने किया था। आइये, हम यह सुनिश्चित करें कि पंजाब के लोग अपने अधिकारों के लिये फौरी संघर्ष को उस आज़ाद हिन्दोस्तान - जिसके लिये हमारे शहीदों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी - की स्थापना करने के नज़रिये के साथ आगे बढ़ायें।
ग़दर जारी है!
इंक़लाब ज़िदाबाद!
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