11 नवम्बर, 2018 को इस्राइली सेना ने एक खुफिया आपरेशन किया जिसमें सुरक्षाकर्मियों का एक जत्था एक गैर-सैनिक गाड़ी में दक्षिणी गाज़ा पट्टी के फिलिस्तीनी इलाके में गया और वहां के सुरक्षाकर्मियों को गोलियों से भून दिया। सात फिलिस्तीनियों की मौत हो गई। इसके अलावा छः फिलिस्तीनी और एक इस्राइली जख्मी हुए हैं। इससे गाज़ा पट्टी में एक दूसरे के खि़लाफ़ गोलीबारी हुई और हवाई हमले व रॉकेट से हमले तेज़ी से बढ़े।
12 नवम्बर को इस्राइली हमलों में और भी फिलिस्तीनियों की मौत हो गई। यह 2014 के युद्ध के बाद, दोनों पक्षों के बीच सबसे बड़ी हिंसा मानी जा रही है। इस्राइली सेना यह दावा कर रही है कि उनके लड़ाकू विमानों, तोपों व जहाजों का निशाना सिर्फ हमास व इस्लामी जिहादियों के सैन्य परिसर व हथियारों के भंडार थे। परन्तु हमास ने स्पष्टीकरण दिया है कि इस्राइली सेना ने गाज़ा के लोगों को भयभीत करने के लिये बमबारी और हत्याएं की हैं।
गाज़ा में रहने वाली फिलिस्तीनी आबादी को अपने घरों से भगाने के लिये इस्राइल अलग-अलग रणनीतियां अपनाता आया है। उसने गाज़ा की सीमा पर बहुत से सैनिकों को ज़मीनी हमलों के लिये तैनात किया है ताकि उत्तरी गाज़ा से फिलिस्तीनी आबादी को भगाया जा सके। परन्तु लोगों के पास जाने की कोई जगह ही नहीं है।
जबसे हमास ने सत्ता ली है, इस्राइल व मिश्र ने गाज़ा की घेराबंदी की हुई है। यह घेराबंदी फिलिस्तीनी लोगों के मानव अधिकारों का उल्लंघन है और ज़रूरी सेवाओं को पाने में उन्हें बहुत बाधित करती है।
इस्राइल ने कभी भी यह नहीं माना है कि गाज़ा और वेस्ट बैंक के इलाके आज़ाद फिलिस्तीनी राज्य के हिस्से हैं। गाज़ा में फिलिस्तीनी लोगों के आज़ादी से आने-जाने सहित ज़िन्दगी के हर पहलू पर इस्राइल कड़ा नियंत्रण रखता है। यह स्पष्ट है कि दोनों पक्षों के बीच हाल में हुई गोलीबारी को इस्राइल ने उकसाया था जो एक कब्ज़ाकारी ताक़त है। इसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिये क्योंकि यह फिलिस्तीनी लोगों को कुचलने और अपने ही स्वतंत्र राज्य में उन्हें अपनी ज़िन्दगी शांतिपूर्वक तरीके से न जीने देने की एक और कोशिश है। परन्तु अमरीका समर्थित इस्राइल के नये हमलों के खि़लाफ़ फिलिस्तीनी लोगों ने दशकों से चल रहे मातृभूमि के अधिकार के लिये अपने संघर्ष को त्यागा नहीं है।
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