हाल ही में सेवानिवृत हुये मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओम प्रकाश रावत ने 3 दिसंबर को मीडिया को एक बयान में बताया कि नवंबर 2016 को हुई नोटबंदी देश के चुनावों में कालेधन के उपयोग को रोकने में असफल रही।
“नोटबंदी के बाद सोचा गया था कि चुनाव के दौरान पैसे का दुरुपयोग कम हो जाएगा। लेकिन इस दौरान आये आंकड़ों के आधार पर यह साबित नहीं किया जा सका। पिछले चुनावों की तुलना में, उन्हीं राज्यों में अधिक नगदी जब्त की गई,” रावत ने ए.एन.आई. को बयान देते हुए कहा। उन्होंने कहा कि “इससे पता चलता है कि राजनीतिक पार्टियों और उन्हें धन देने वालों के पास नगद रुपयों की कोई कमी नहीं है।” उन्होंने यह भी बताया कि “चुनाव में काले धन के प्रयोग पर किसी प्रकार की जांच नहीं होती थी!”
रावत के बयान से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार द्वारा किए गए झूठे दावे का पर्दाफाश होता है कि नोटबंदी का उद्देश्य कालेधन पर रोक लगाना था। यह इस हक़ीक़त का खुलासा करता है कि जबकि नोटबंदी से करोड़ों मेहनतकश लोगों का विनाश हुआ, तो नोटबंदी से चुनावों के नतीजों को निर्धारित करने में धनबल का प्रयोग कुछ कम नहीं हुआ। किस राजनीतिक पार्टी या गठबंधन की सरकार बनेगी इसका फैसला हिन्दोस्तान के 150 इजारेदार पूंजीवादी घराने करते हैं। वे धनबल के प्रयोग के ज़रिये यह सुनिश्चित करते हैं कि चुनाव के बाद उसी राजनीतिक पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिलेगा जो इन इजारेदार घरानों के हितों की सेवा करेगा।
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