चाहे नौकरियों का संकट या अर्थव्यवस्था की वृद्धि की दर का विषय हो, सरकार के प्रवक्ता खुल्लम-खुल्ला झूठ बोल रहे हैं। वे जो भी बोल रहे हैं, वह लोगों के वास्तविक जीवन के अनुभव से बिल्कुल विपरीत है।
नौकरियों के विषय में झूठ
5 माह पहले, 20 जुलाई को जब प्रधानमंत्री संसद में अविश्वास प्रस्ताव का जवाब दे रहे थे, तब उन्होंने दावा किया था कि पिछले एक वर्ष में 1 करोड़ से भी अधिक नए रोज़़गार उत्पन्न किए गए हैं। उन्होंने बताया था कि यह अनुमान एक स्वतन्त्र संस्था द्वारा किये गये सर्वे पर आधारित है।
यह किसी भी तरह एक वैज्ञानिक सांख्यिकीय अनुमान नहीं था। यह अनगिनत आशावान पूर्वानुमानों पर आधारित मोटा-मोटी आकलन था। (देखिए बाक्स: मोदी जी का अंकगणित)
अनेक प्रकार के संदेहास्पद पूर्वानुमानों पर आधारित होने के अलावा, मोदी जी के अंकगणित में एक ही आदमी या रोज़़गार को दो बार गिना गया है। उदाहरण के तौर पर, कुछ लोगों को जिन्हें चार्टर्ड एकाउंटेंटों या वकील कम्पनियों ने नया रोज़़गार दिया होगा, उन्होंने ईपीएफ में भी अपने को नामांकित किया होगा। ऐसा भी होता है कि जिसे छोटी अवधि के कान्ट्रेक्ट पर नौकरी दी जाती है, उसे कन्ट्रेक्ट समाप्त होने पर नए कन्ट्रेक्ट पर दुबारा रख लिया जाता है। इस तरह अनेक “नए रोज़़गार” एक ही आदमी को नौकरी देते होंगे!

एक और बड़ी कमजोरी है कि कितने रोज़़गार नष्ट किये जा रहे हैं उसका कोई अनुमान नहीं है। वास्तव में, अतिरिक्त रोज़गार या कुल रोज़गार बनना = नवीन बनाये गए रोज़गार - नष्ट किये गए पुराने रोज़गार। सभी उत्पन्न किये गए नवीन रोज़गारों या नष्ट किए गए पुराने रोज़गारों की संख्या के विषय में कोई भी अधिकृत आंकड़े नहीं हैं।
नोटबंदी तथा जीएसटी लागू करने के कारण 2017 में अनौपचारिक तथा पंजीकरण रहित लघु उद्योगों में लाखों रोज़गार नष्ट हो गए। सेंटर फॉर मोनिटरिंग दी इंडियन इकोनोमी के अनुसार, नोटबंदी के कारण श्रम सहभागिता दर 48 फीसदी से घट कर 43 फीसदी हो गई। इसका अर्थ है कि कार्यशील आयु जनसंख्या में से 5 फीसदी ने कोई भी लाभदायक रोज़गार पाने की आशा छोड़ दी या वे श्रमशक्ति की गणना से ही बाहर हो गए।
प्रत्येक वर्ष एक करोड़ से अधिक युवक श्रमशक्ति में जुड़ते हैं। बहुत कम अतिरिक्त रोज़गार उत्पन्न हो रहे हैं। अधिकांश नवीन नौकरियां व्यापार तथा अन्य सेवा क्षेत्रों में हैं जो ज़्यादातर अस्थाई कांट्रेक्ट तथा कुछ निर्धारित-काल कांट्रेक्ट पर होती हैं। त्योहारों के कुछ महीनों में खुदरा व्यापारी कम्पनियां लाखों सेल्समैनों को अस्थाई कांट्रेक्ट पर रख लेती हैं। स्थायी नौकरियों की बहुत ही कमी है।
अक्तूबर 2018 में भारतीय रेल में 1.2 लाख नौकरियों के लिए 237 लाख लोगों ने अर्जी दी। यह दिखाता है कि देश में सुरक्षित नौकरी का कितना अभाव है और स्थाई नौकरी के लिए लोग कितने बेताब हैं।
सच्चाई तो यह है कि रोज़गार संकट का कोई भी हल निकालने की संभवना के मार्ग में अर्थव्यवस्था की पूंजी-केन्द्रित दिशा एक रुकावट है। क्योंकि सरकारी प्रवक्ताओं के पास कोई भी वास्तविक हल नहीं है, इसलिए वे खुल्लम-खुल्ला झूठ बोल रहे हैं। अधिकृत वार्षिक आंकड़ों के अभाव में वे गलत अंकगणित का सहारा लेकर बड़े-बड़े उटपटांग दावे पेश कर रहे हैं।
आर्थिक वृद्धि दर के विषय में झूठ
हिन्दोस्तान की अर्थव्यवस्था के विषय में बोला गया सबसे बड़ा झूठ यह है कि 2014 के पश्चात, वृद्धि दर उसके पिछले दस वर्षों से ज़्यादा है। यह दावा केंद्रीय सांख्यिकी संस्थान की सकल घरेलू उत्पाद की नवीन श्रृंखला की घोषणा पर आधारित है।
घरेलू खपत, घरेलू निवेश तथा निर्यात के जोड़ में से आयात को घटा दें तो कुल उत्पादन का आंकड़ा मिलता है। यह कैसे विश्वास किया जा सकता है कि अर्थव्यवस्था में पहले से तेज़ी से वृद्धि हो रही है जब खपत, निवेश और निर्यात सभी में मंदी है या गिरावट है?
उदाहरण के तौर पर, सूती तथा कृत्रिम रेशों के कपड़ों के उत्पादन में पिछले अनेक वर्षों में गिरावट हुई है (चार्ट देखिए)। इससे दिखता है कि हमारे देश में लोगों के पास नए वस्त्रों पर खर्चा करने के लिए धन कम होता जा रहा है। यह बढ़ती बेरोज़गारी और अधिक मुद्रा-स्फीति के कारण खर्च करने के लिए कम धन, अधिक परोक्ष कर तथा कर्ज़ चुकाने के लिए बढ़ती हुई किश्तें, इन सबका संयुक्त परिणाम हैं।
अनेक पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों तथा अंग्रेजी पत्रिकाओं की टिप्पणियों ने भी नवीन जी.डी.पी. श्रृंखला के आधार पर सरकार के पहले से ज्यादा आर्थिक वृद्धि दर के दावे के बारे में कहा है कि वह सभी मुख्य आर्थिक सूचकांकों के विपरीत है।
नीति आयोग के सदस्यों सहित सरकारी प्रवक्ता इस दावे के समर्थन में यह दलील दे रहे हैं कि हालांकि औद्योगिक उत्पादन कम हुआ है, पर सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर ने उत्पादन में हुई गिरावट की पूरी से भी ज़्यादा आपूर्ति कर दी है।
सेवाओं द्वारा मूल्य बढ़त के अनुमान में सदैव ही अतिश्योक्ति तथा अधिमूल्यांकन पाए गए हैं। सेवा क्षेत्र का एक बड़ा भाग है “सार्वजानिक प्रबंधन तथा सुरक्षा”। सार्वजानिक प्रबंधन तथा सुरक्षा ऐसी गतिविधियां नहीं हैं जिनसे मूल्य बढ़त होती है। वे हिन्दोस्तान की पूंजी में वृद्धि नहीं करते हैं। सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का बड़ा योगदान व्यापार तथा वित्तीय कारोबार का बताया जाता है जबकि ये ऐसी गतिविधियां नहीं हैं जिनसे कोई मूल्य उत्पादन होता है। अनेक वर्षों से अब ज़्यादा से ज़्यादा लोग यह समझ रहे हैं कि राजनीतिक नेता जो कहते हैं उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। अब उनकी विश्वसनीयता और भी गिर गयी है। ऐसा लगता है कि पहले की तरह अब राष्ट्रीय लेखा-जोखा सांख्यिकी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता।
एक करोड़ नौकरियों के अनुमान पर पहुंचने के लिए मोदी जी का अंकगणित क़दम 1: सितम्बर 2017 से मई 2018 के दौरान, कर्मचारी भविष्य निधि (ई.पी.एफ.) योजना के अंतर्गत करीब 45 लाख अभिदाता नामांकित हुए। इसी दौरान राष्ट्रीय पेंशन योजना में 5.7 लाख अन्य नामांकित हुए। अतः इन 9 महीनों में इन दो योजनाओं में 50 लाख से अधिक नए अभिदाता नामांकित हुए। इसके आधार पर पूरे वर्ष की संख्या 70 लाख होगी, यह अनुमान लगाया गया। क़दम 2: क्योंकि 7,000 चार्टर्ड एकाउंटेंट व्यवस्था में जुड़े, यह पूर्वानुमान किया गया कि 5,000 ने नए कारोबार शुरू किए होंगे तथा प्रत्येक ने 20 लोगों को रोज़़गार दिया होगा, अतः 1 लाख एकाउंटिंग रोज़़गार उत्पन्न हुए होंगे। यह पूर्वानुमान किया गया कि प्रत्येक वर्ष 80,000 डाक्टर स्नातकों में से 60 प्रतिशत अपनी स्वयं की प्रेक्टिस शुरू करेंगे तथा प्रत्येक डाक्टर 5 लोगों को रोज़़गार प्रदान करेगा। अतः 2.4 लाख अन्य रोज़़गार पैदा होंगे। इसी तरह यह पूर्वानुमान किया गया कि 80,000 कानून के स्नातकों में से भी 60 प्रतिशत 2-3 लोगों को रोज़़गार प्रदान करेंगे, जिस कारण 1.2 लाख अन्य रोज़़गार हो जाएंगे। इन सब पेशों को मिलाकर 4.6 लाख रोज़़गार होंगे। क़दम 3: अनुमान किया गया कि नवीन व्यवसायिक वाहनों ने 11.4 लाख रोज़़गार उत्पन्न किए। फिर अनुमान किया गया कि 25 लाख नवीन कारों ने करीब 5 लाख ड्राइवरों के लिए रोज़़गार उत्पन्न किया होगा। ऑटो-रिक्शा से 3.4 लाख अन्य रोज़़गार उत्पन्न हुए। इस तरह सड़क यातायात में कुल मिलाकर 20 लाख नए रोज़़गार बने। क़दम 4: इन सबका जोड़ 94.6 लाख है, करीब 100 लाख या 1 करोड़ रोज़़गार। |
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