मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारें अपने हाथों से जाने के बाद भाजपा का नेतृत्व सावधान हो गया है। 2019 के आम चुनावों से पहले किसानों के गुस्से को किसी तरह से शांत करने के लिए मोदी सरकार हाथ पैर मार रही है।
अख़बारों में आई रिपोर्टों के अनुसार प्रधानमंत्री द्वारा 27 दिसम्बर को एक मीटिंग बुलाई गई, जो तीन घंटे तक चली। इस मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा वित्त मंत्री अरुण जेटली, भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह, और केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने हिस्सा लिया। ख़बरों से पता चला है कि इस मीटिंग में किसानों को तथाकथित राहत देने के विभिन्न तरीकों की समीक्षा की गयी। इसमें कांग्रेस के प्रचार को जवाब देने पर भी चर्चा हुई, जिसने उन राज्यों में कर्ज़ माफ़ी की घोषणा की है, जहां वह जीत कर आई है और अपनी सरकारें बनायी हैं।
तमाम तरीकों में से एक तरीका जिस पर भाजपा गौर कर रही है, वह है “मूल आय अंतरण” योजना। यह योजना उन लोगों पर लक्षित की जा रही है जिनके पास अपनी खुद की खेती लायक ज़मीन है। इस तरह की योजना कुछ समय से तेलंगाना में लागू की जा चुकी है, जिसके तहत ऐसे किसानों को प्रति एकड़ 4000 रुपये चेक के द्वारा बैंक अकाउंट में जमा किये जा रहे हैं।
इससे पहले कि हम केंद्र और राज्य स्तर पर प्रतिस्पर्धी पार्टियों की सरकारों द्वारा किसानों को दी जा रही रियायतों का मूल्यांकन करें, यह समझना ज़रूरी है कि देश के करोड़ों किसान किस कारण से इस गहरे संकट का सामना कर रहे हैं? क्या वजह है कि देशभर के किसान कर्ज़ में डूबते चले जा रहे हैं और यहां तक कि वे खुदकुशी करने को मजबूर हो गए हैं?
मौसम की मार और सिंचाई में सार्वजनिक निवेश की कमी के अलावा किसानों को कृषि की लागत की वस्तुओं की क़ीमत में तेज़ बढ़ोतरी और बाज़ार में उनकी फ़सल को मिलने वाली क़ीमत में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है। यहां तक कि जब वे बम्पर फसल उगाते हैं तब भी उनकी आमदनी में गिरावट आती है, क्योंकि उनको अपनी फ़सल के लिए बहुत ही कम दाम मिलता है। अपनी फ़सल के लिए स्थिर और लाभकारी दाम मिले, यह मांग देशभर के सभी किसान संगठन उठा रहे हैं।
देश के अधिकतम किसानों के पास न तो भण्डारण की सुविधा है और न ही वे उस वक्त तक रुक सकते हैं, जब उन्हें सही क़ीमत मिलेगी। जैसे ही फ़सल की कटाई हो जाती है वे अपनी फ़सल को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं, फिर उन्हें अपनी फ़सले के लिए चाहे जो क़ीमत मिले। फ़सल की कटाई के ठीक बाद बाज़ार कृषि उत्पादों से लबालब भरा होता है। निजी व्यापारी जिनमें हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीपति सबसे आगे होते हैं, वे इस मौके का फ़ायदा उठाते हैं और कृषि उत्पादों को सबसे कम क़ीमत पर ख़रीद लेते हैं।
कुछ फ़सलों के लिए सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से “न्यूनतम समर्थन मूल्य” की घोषणा की जाती है। लेकिन किसानों को इसका कोई फ़ायदा नहीं होता क्योंकि सरकार किसानों से फ़सल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का कोई इंतजाम नहीं करती है। ऐसी हालत में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से बहुत कम दाम पर अपनी फ़सल बेचने को मजबूर होना पड़ता है, उनको अपनी फ़सलों के लिए इतना कम दाम मिलता है कि वे फसल की लागत पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर पाते।
कुछ दशक पहले भारत सरकार की सार्वजनिक ख़रीदी की एक नीति हुआ करती थी, जिसके तहत देश के चुनिंदा इलाकों में गेंहूं और धान की फ़सल की सार्वजनिक खरीदी की जाती थी। फ़सल की ख़रीदी के लिए राज्य सरकारें अपने बजट से कुछ खास खर्चा नहीं किया करती थीं।
पिछले कई वर्षों से हिन्दोस्तानी और विदेशी बाज़ारों के लिए, नकदी फ़सलों में बढ़ोतरी के चलते कृषि उत्पादन के क्षेत्र में काफी विविधता आई है। लेकिन इसके लिए सार्वजनिक ख़रीदी की व्यवस्था को और विस्तृत करने की बजाय पिछले 25 वर्षों में सरकारी नीति इसके ठीक उलटी दिशा में चलाई गई है। केंद्र और राज्य स्तर पर बैठी सरकारों ने व्यापार के उदारीकरण का कार्यक्रम लागू किया है। यह कार्यक्रम मौजूदा सार्वजनिक ख़रीदी व्यवस्था को बर्बाद करने का कार्यक्रम है, जो कि पहले से ही बेहद सीमित है।
व्यापार के उदारीकरण का अजेंडा निजी पूंजीपतियों के आयामों को और विस्तृत करने के मक़सद से चलाया जा रहा है ताकि वे सीधे किसानों से कम-से-कम दाम पर उनकी फ़सल को खरीद पाएं।
भाजपा और कांग्रेस पार्टी ये दोनों पार्टियां जब सत्ता में होती हैं तो ये दावा करती हैं कि अर्थव्यवस्था को बाज़ार-उन्मुख रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इसका मतलब है कि राज्य सत्ता को बाज़ार में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। राज्य सत्ता को पूंजीपतियों के रास्ते में रुकावट नहीं खड़ी करनी चाहिए, जो कृषि उत्पादों में व्यापार से अधिकतम मुनाफ़े बनाना चाहते हैं।
भाजपा और कांग्रेस पार्टी ये दोनों ही पार्टियां इजारेदार पूंजीपतियों की सेवा करने के प्रति वचनबद्ध हैं, इसलिए देश के अन्नदाता किसानों को सुरक्षित रोज़ी-रोटी की गारंटी देने की इन दोनों पार्टियों की न तो नीयत है और न ही इनमें क़ाबिलियत। ये पार्टियां किसानों को एक या दूसरी रियायतों का वादा करके उनके गुस्से को ठंडा करने और धोखा देने की कोशिश कर रही हैं।
आय अंतरण योजना का विचार मात्र हमारे देश के किसानों का घोर अपमान है। हमारे देश के किसान मेहनती लोग हैं और वे मांग कर रहे हैं कि उनकी मेहनत की मुनासिब क़ीमत दी जाये। वे सरकार से भीख नहीं मांग रहे हैं। वे अपना अधिकार मांग रहे हैं।
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