कश्मीर में 14 फरवरी को सी.आर.पी.एफ. के जवानों पर किये गए आतंकवादी हमले के बाद, देश के दूसरे राज्यों में रह रहे, काम कर रहे या पढ़ाई कर रहे कश्मीरी लोगों पर आतंक की मुहिम छेड़ दी गयी है।
प्रधानमंत्री और दूसरे मंत्री सोच-समझकर नफ़रत और हिंसा की आग को भड़का रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पटना और बनारस में बहुत ही भड़काऊ भाषण दिए। उन्होंने “खून का बदला” और “आपके दिल की आग मेरे दिल में भी”, जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। मेघालय के राज्यपाल ने “हर कश्मीरी चीज का बहिष्कार” करने का बुलावा दिया है!
इन सभी नेताओं ने देश के अनेक राज्यों में कश्मीरी छात्रों, दुकानदारों और अन्य कामकाजी लोगों पर किये जा रहे हमलों को हरी झंडी दे दी। जगह-जगह पर हमले होते रहे और राज्य प्रशासन व पुलिस मूक दर्शक बनकर खड़ी रही। कई मामलों में पुलिस ने एफ.आई.आर. दर्ज करने से इनकार कर दिया या हमलावर गुंडों को अगुवाई देने वाले गुनहगारों को गिरफ़्तार करने से इनकार कर दिया।
जम्मू में हुक्मरान वर्ग के नेताओं की अगुवाई में गुंडों ने कश्मीरी लोगों के घरों, दुकानों, कारोबारों और गाड़ियों को जलाया। ये हमले कफ्र्यू के दौरान, स्थानीय प्रशासन की नज़रों के सामने किये गए। पटना के कश्मीर बाज़ार इलाके में कश्मीरी व्यापारियों और निवासियों को बुरी तरह पीटा गया, उनके सामान और कारोबारों को नष्ट कर दिया गया। उन्हें अपनी जान बचाने के लिए घर-बार छोड़कर भागना पड़ा। दिल्ली में भड़काऊ नारे देने वाले गिरोहों को कश्मीरियों के खिलाफ़ हिंसा फैलाने की पूरी छूट दी गयी।
कश्मीरी छात्रों को “आतंकवादी”, “राष्ट्र-विरोधी” और “पाकिस्तानी एजेंट” करार दिया गया है। देहरादून, अंबाला, बेंगलुरु तथा कई अन्य शहरों में उन पर हमले किये गए हैं और उन्हें धमकाया गया है। उनके खिलाफ़ झूठे इल्जाम लगाये गए हैं, जैसे कि तथाकथित “राष्ट्र-विरोधी” नारे लगाने का इल्जाम, सोशल मीडिया पर तथाकथित “राष्ट्र-विरोधी” पोस्ट डालने का इल्जाम, इत्यादि। उन झूठे इल्जामों के आधार पर अधिकारी उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं। देहरादून के कम से कम दो शिक्षा संस्थानों के प्रधानाचार्यों को लिखित में वादा करने को मजबूर किया गया है कि अगले सत्र से कश्मीरी छात्रों को दाखिला नहीं देंगे।
कश्मीरियों को बदनाम करने और उनके खिलाफ़ हिंसा भड़काने के लिए, सोशल मीडिया पर सैकड़ों फरेबी विडियो और पोस्ट फैलाए जा रहे हैं। बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घरानों की मालिकी वाले टी.वी. चैनलों ने आग में घी डालते हुए, यह दावा किया है कि कश्मीरियों पर हो रहे ये हमले पुलवामा में सी.आर.पी.एफ. पर हुए बम हमले की “प्रतिक्रिया” हैं। वे इन हमलों को लोगों की “स्वतः स्फूर्त प्रतिक्रिया” बताकर, इन्हें जायज़ ठहरा रहे हैं। यह बहुत बड़ा झूठ है। राज्य की एजेंसियां, केंद्र में सत्ता पर विराजमान पार्टी और इजारेदार पूंजीपतियों द्वारा नियंत्रित मीडिया बड़े सुनियोजित तरीके से कश्मीरियों के खिलाफ़ नफ़रत और उन्माद फैलाती रही हैं। हुक्मरान वर्ग ने ही नफ़रत, अराजकता और हिंसा के वर्तमान माहौल को पैदा किया है। हम कभी नहीं भूल सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी की केंद्र सरकार ने किस तरह 1984 में सिख समुदाय के खिलाफ़ झूठा जहरीला प्रचार फैलाकर, ठीक इसी प्रकार का नफ़रत और हिंसा का माहौल पैदा किया था, जिसमें सिखों के जनसंहार को अंजाम दिया गया था।
इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अगुवाई में वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था लोगों की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती है। हमारे हुक्मरानों को इस व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए तरह-तरह के भटकाववादी और बांटने वाले तौर-तरीकों का सहारा लेना पड़ता है। हिंसा और आतंक का माहौल पैदा करके हमारे हुक्मरान मेहनतकश लोगों को आपस में बांटकर और डराकर रख सकते हैं। कश्मीरियों के खिलाफ़ नफ़रत और आतंक फैलाने की इन हरकतों का भी यही उद्देश्य है।
परन्तु कश्मीरी लोगों को अलग करने और उन्हें आतंकित करने की ये सारी कोशिशें नाकामयाब रहीं। इन अपराधी हमलों की व्यापक तौर पर निंदा की गयी है। सत्ता के रखवालों के ठीक विपरीत, देशभर में लोग भारी संख्या में सड़कों पर निकलकर, तथा सोशल मीडिया पर, कश्मीरियों पर इन हमलों और कश्मीरियों के खिलाफ़ नफ़रत-भरे प्रचार की कड़ी निंदा कर रहे हैं। लोगों ने बड़ी बहादुरी के साथ, कश्मीरियों की रक्षा की है। पंजाब और उत्तरी हिन्दोस्तान में सिख समुदाय के लोगों ने कश्मीरी छात्रों और लोगों का जिस प्रकार दिल खोलकर समर्थन व मदद की है, वह हमारे लोगों के भाईचारे की एक उज्ज्वल मिसाल है।
देशभर के छात्रों और नौजवानों ने अपने कश्मीरी बहनों-भाइयों का खुलकर समर्थन किया है, उनके खिलाफ़ नफ़रत-भरे प्रचार और उन पर हमलों की निंदा की है तथा हमारी एकता व भाईचारे को मजबूत करने की मांग की है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों ने अधिकारियों से मांग की है कि कैंपस में सभी छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और किसी भी छात्र पर कोई हमला न हो सके। जे.एन.यू., दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों ने कश्मीरी छात्रों को हमलों और बेइज़्ज़त किये जाने से बचाया है।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी कश्मीरी लोगों के साथ हमारे देश के लोगों की एकता और भाईचारे को सलाम करती है। कश्मीरी लोगों की इस कठिन घड़ी में, देश के तमाम लोगों ने, अपनी जानों को ख़तरे में डालकर, उनकी मदद की है।
कश्मीरी लोगों पर इन हमलों की व्यापक निंदा को देखते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि “हम कश्मीर या कश्मीरियों के खि़लाफ़ नहीं हैं”! यह 2005 में मनमोहन सिंह द्वारा 1984 के सिखों के जनसंहार के लिए मांगी गयी “माफी” के जैसा ही है।
किसी समुदाय को निशाना बनाकर उसके खिलाफ़ नफ़रत-भरे प्रचार करने और हिंसा फैलाने की इन कोशिशों को हम नाक़ामयाब करें! आतंकवाद और राजकीय आतंकवाद का विरोध करें! अपनी एकता मजबूत करें! राजनीतिक और विचारधारात्मक मतभेदों को हल करने के लिए बलप्रयोग का विरोध करें! ‘बांटो और राज करो’ की राजनीति को ख़ारिज़ करें! सभी लोगों के मानव अधिकारों और जनवादी आधिकारों की हिफ़ाज़त करें!
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