मज़दूर एकता लहर
पानी की कमी के संबंध में कई लेख छापने के लिये मैं आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। 16-31 जुलाई के अंक में, एक सविस्तार लेख में आपने ध्यान दिलाया कि हिन्दोस्तान में जल संसाधनों की बहुतायत है, जिसमें मानसून और हिमालय में हिम के पिधलने से बनी नदियां शामिल हैं, फिर भी पूरे हिन्दोस्तान में भू-जल का स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। जैसा कि लेख में बताया गया है कि इस ख़तरनाक प्रवृत्ति का कारण अर्थव्यवस्था की पूंजीवादी दिशा में तथा हिन्दोस्तानी राज्य द्वारा जल संसाधनों के संरक्षण के दायित्व को त्याग देने में देखा जा सकता है।
प्राचीन काल से हिन्दोस्तान में, खास तौर पर उन इलाकों में जहां पानी के प्राकृतिक संसाधनों की कमी थी, जल संरक्षण की देशी व्यवस्थाएं प्रसिद्ध थीं। तामिलनाडू के कांचीपुरम व तिरुवल्लूर जिलों में, बिहार के मधुबनी व दरभंगा इलाकों और देश के अन्य हिस्सों में जल संचय की व्यवस्था के लिये जाने जाते थे, जिनमें टैंक, पोखर और तलाब शामिल थे, जिनका देखरेख करना राजा का सबसे महत्वपूर्ण दायित्व होता था। अंधाधुंध पूंजीवादी विकास के कारण इन जलाशयों में से अधिकतर सूख चुके हैं।
समस्या की जड़ इस तथ्य में है कि हिन्दोस्तानी राज्य सिर्फ शासक वर्ग के अजेंडे को लागू करने के बारे में चिंतित है। इसकी सारी कार्यवाइयां बड़ी-बड़ी इजारेदार कंपनियों के हित में होती हैं। जलाशय व्यवस्था की देखरेख करने से शासक वर्ग का मुनाफा नहीं बनता है जबकि यह लोगों के कल्याण के लिये बेहद जरूरी है। शासक वर्ग का मुनाफा तब बढ़ता है जब सड़कों जैसे संरचनात्मक कार्यों को या अमीरों के लिये आवास व वाणिज्य की बड़ी-बड़ी इमारतों के निर्माण को तेजी से किया जाता है। इस तरह के विकास में अगर जल का अतिदोहन होता है या भू-जल की भरपाई बंद हो जाती है, या थोड़ी से वर्षा से ही जल-भराव होने लगता है तो उनकी बला से होने दो।
उदाहरण के लिये, जब पक्की या कांक्रीट की सड़कें बनाई जाती हैं तब उस इलाके के जल प्रवाह में रुकावट आती है और जलाशयों तक पानी पहुंच नहीं पाता है। महानगरों में कांक्रीट सड़कों व फ्लाईओवरों के बनाने से तथा खुली मिट्टी के ज्यादा क्षेत्रफल को पक्का कर देने से भी भू-जल भरपाई में बाधा आती है जिससे भू-जल का स्तर गिरने लगता है और साथ ही जगह-जगह जल-भराव भी होता है।
सरकारें, शहरों व कस्बों में समान जल वितरण के लक्ष्य से भी पीछे हट रही हैं। वे यह नुस्खा अपना रही हैं कि जो खरीदने के लिये ज्यादा पैसे देने को तैयार है, उन्हें मनमर्जी पानी की सप्लाई मिलनी चाहिये जबकि जो आम मेहनतकश लोग हैं उन्हें न के बराबर पानी से काम चलाना चाहिये और टैंकरों के लिये इंतजार करने में और दो हांडी पानी भरने की मारामारी में ज़िन्दगी बिता देनी चाहिये। सरकारें टैंकरों से पानी की सप्लाई करने वालों को बढ़ावा दे रही हैं और उन्हें नगर निगम के जल को चोरी करने दे रही हैं व गैरकानूनी गहरी बोरवेल से पानी खींचने दे रही हैं। नतीजन, भू-जल स्तर तेजी से गिर रहा है और लोगों के हैंड पंपों से और कुंओं में पानी खत्म हो रहा है, जिससे लोगों को टैंकरों पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है।
सरकार के मंत्री फटाफट सूखे और बाढ़ के हवाई सर्वे करने के लिये निकल पड़ते हैं। पर यह सिर्फ मीडिया में उनके मगरमच्छ के आंसू दिखाने के लिये होता है। पानी की कमी की समस्या को हल करने के लिये कोई कदम उठाना उनके अजेंडे में नहीं होता। हर साल पहले से ज्यादा सूखा और बाढ़ आती हैं और जल संसाधनों की देखरेख को नज़रअंदाज किया जाता है। इस संदर्भ में, मैं मजदूर एकता लहर को दाद देना चाहता हूं कि आपने लोगों द्वारा जन संसाधनों के संरक्षण व देखरेख में पहल को उजागर किया। 1-15 अगस्त के अंक में राजस्थान के जोहड़ और रामगढ़ गांवों में लोगों का संघर्ष प्रेरणादायक था।
धन्यवाद।
कैलाश कुमार, पटना
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