हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 18 अगस्त, 2019
हिन्दोस्तानी राज्य ने जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों पर बड़ी बेरहमी से हमला किया है। 5 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति के आदेश और संसद में पारित एक प्रस्ताव के ज़रिये, जम्मू-कश्मीर को औपचारिक तौर पर दिये गये विशेष दर्ज़े को ख़त्म कर दिया गया। हिन्दोस्तान के संविधान के सारे प्रावधान अब उस इलाके में लागू होंगे। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर अब एक राज्य नहीं रहेगा, बल्कि उसे दो केंद्र-शासित प्रदेशों में बांट दिया गया है।
जम्मू-कश्मीर में दसों-हजारों अतिरिक्त सैनिक तैनात किये गए हैं, ताकि वहां के लोग इन हमलों का विरोध करने के लिए बाहर न निकल सकें। 4 अगस्त की रात से वहां अनवरत कफ्र्यू लगा दिया गया है। संचार के सभी माध्यम बंद हैं। सैकड़ों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया गया है। उनमें से अनेकों को कश्मीर के बाहर की जेलों में बंद किया गया है। कश्मीर के अन्दर, विरोध की हर प्रकार की आवाज़ को रोक दिया गया है। इस खूंखार आतंक की मुहिम के बावजूद, कुछ जन-प्रदर्शनों की ख़बरें आ रही हैं।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी बड़े गुस्से के साथ, कश्मीरी लोगों पर इस बेमिसाल राजकीय दमन और उनके राष्ट्रीय व मानव अधिकारों पर इस बेरहम हमले की निंदा करती है।
72 वर्षों पहले, बरतानवी उपनिवेशवादियों ने एशिया में अपने साम्राज्यवादी हितों को सुरक्षित करने के लिए, हिन्दोस्तान के बंटवारे को बड़ी बेरहमी से आयोजित किया था। हिन्दोस्तान के दिल में एक छुरा भोंक दिया गया और पंजाब व बंगाल के राष्ट्रों को सांप्रदायिक आधार पर बांट दिया गया। उपनिवेशवादियों ने हिन्दोस्तान और पाकिस्तान के बीच खूनी जंग के ज़रिये कश्मीर को भी बांट दिया। उस समय से, बरतानवी-अमरीकी साम्राज्यवादी कश्मीर के मुद्दे को लेकर, हिन्दोस्तान और पाकिस्तान को हमेशा ही आपस में लड़वाते रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर के ‘विशेष दर्ज़े’ को ख़त्म करके, उसे बांटकर और केंद्र सरकार के सीधे शासन के तले लाकर, हिन्दोस्तान के सरमायदारों ने दक्षिण एशिया में एक प्रमुख ताक़त बतौर खुद को स्थापित किया है। उन्होंने यह साफ सन्देश दिया है कि अपने नियंत्रण के इलाकों की सारी ज़मीन और संसाधनों पर अपने सम्पूर्ण प्रभुत्व को चुनौती देने वाली किसी भी ताक़त को या दखलंदाज़ी करने वाली किसी भी विदेशी ताक़त को वे बर्दाश्त नहीं करेंगे। और हिन्दोस्तानी संघ के अंदर, अगर कोई भी अपने राष्ट्रीय अधिकारों की मांग करेगा, तो उसे क्रूरता से कुचल दिया जायेगा।
कश्मीर सिर्फ एक “विवादास्पद इलाका” नहीं है। कश्मीर एक राष्ट्र है, जिसके लोग हमेशा ही आत्म-निर्धारण के अधिकार की मांग उठाते रहे हैं। वे लम्बे अरसे से राजकीय आतंक और सैन्य शासन को ख़त्म करने की मांग करते आये हैं। हिन्दोस्तानी राज्य का 5 अगस्त का फैसला कश्मीरी लोगों को बेइज़्ज़त करने का क़दम है, उनके राष्ट्रीय अधिकारों को पूरी तरह नकारने का क़दम है।
हिन्दोस्तानी राज्य ने जिस तरीके से कश्मीर के दर्जे़ को बदल दिया, वह हिन्दोस्तानी लोकतंत्र के फरेब को साफ-साफ दर्शाता है। यह साफ दिखता है कि लोकतंत्र की नकाब के पीछे, इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग की वहशी हुक्मशाही मौजूद है।
हिन्दोस्तानी राज्य ने संविधान के तहत कश्मीरी लोगों के औपचारिक अधिकारों को छीनने से पहले, उनकी राजनीतिक पार्टियों और संगठनों के साथ सलाह-मशवरा करने का दिखावा तक नहीं किया। हिन्दोस्तानी राज्य ने साम्राज्यवादी तरीके से एक-तरफा फैसले लिए और फिर दावा कर दिया कि यही कश्मीरी लोगों और सभी हिन्दोस्तानी लोगों के हित में है।
इस तथाकथित ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र’ में लोगों के हाथ में कोई ताक़त नहीं है। हमारे जीवन पर असर डालने वाले फैसलों को लेने का अधिकार, यानी संप्रभुता, राष्ट्रपति के हाथ में है, जिन्हें प्रधानमंत्री की अगुवाई में मंत्रिमंडल की सलाह के अनुसार काम करना पड़ता है। संविधान में तथाकथित तौर पर दिये गए सारे ‘अधिकार’ कार्यकारिणी की मनमर्ज़ी से दिये जाते हैं। कार्यकारिणी बड़े सरमायदारों के हित में ही काम करती है। जब भी शासक वर्ग चाहता है, वह इसी संविधान का इस्तेमाल करके, उन सभी अधिकारों को छीन सकता है, जिन्हें लोग इससे पहले सुनिश्चित समझते थे। संसद का काम है बातचीत में उलझे रहना और फिर कार्यकारिणी के फैसलों पर मुहर लगाना।
जब भी और जहां भी पूंजीपति वर्ग की हुकूमत को किसी ने चुनौती दी है, तब-तब हुक्मरान वर्ग ने उस विरोध को बलपूर्वक कुचल दिया है। जून 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गयी थी और देशभर में सारे नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था। जून 1984 में हिन्दोस्तानी राज्य ने फ़ौज भेजकर स्वर्ण मंदिर पर हमला किया था और दस वर्षों तक लगातार सिख धर्म के लोगों को राज्य के हमलों का निशाना बनाया गया, हर सिख को आतंकवादी और अलगाववादी करार दिया गया। बीते तीन दशकों से, कश्मीर, असम, मणिपुर व अन्य राज्यों के लोगों के अधिकार फ़ौजी शासन के पांव तले रौंध दिए गए हैं। इसे जायज़ ठहराने के लिए, वहां के लोगों को आतंकवादी, अलगाववादी और “राष्ट्रीय एकता व क्षेत्रीय अखंडता” के दुश्मन करार दिया गया है।
हिन्दोस्तानी हुक्मरान वर्ग ने उपनिवेशवादियों की ‘बांटो और राज करो’ की नीति को विरासत में पाकर, उसे और कुशल बना दिया है। जब-जब हमारे हुक्मरानों की हुकूमत को किसी विरोध का सामना करना पड़ता है, तब-तब वे संघर्षरत लोगों को “राष्ट्र-विरोधी” और “विदेशी ताक़तों के एजेंट” करार देते हैं, ताकि बाकी लोगों की नज़रों में उन्हें बदनाम किया जा सके। हुक्मरान वर्ग यह दिखाने की कोशिश करता है कि उसका दमन देश के हित में है। इस झूठे प्रचार के सहारे वह संघर्षरत लोगों को अलग करने की कोशिश करता है। हिन्दोस्तान के अंदर जिस भी राष्ट्र या राष्ट्रीयता के लोग अपने अधिकारों की मांग करते हैं, उन्हें “राष्ट्र-विरोधी” और “टुकड़े-दुकड़े गैंग” के सदस्य बताया जाता है।
वास्तव में, हिन्दोस्तान के बड़े सरमायदार खुद ही सबसे बड़े राष्ट्र-विरोधी हैं। वे राष्ट्र-विरोधी हैं क्योंकि वे इस प्राचीन देश में बसे तमाम लोगों के हितों को दबाकर, अपने तंग, साम्राज्यवादी हितों को प्राथमिकता देते हैं। वे राष्ट्र-विरोधी हैं क्योंकि वे अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ एक ख़तरनाक सैनिक रणनैतिक गठबंधन बना रहे हैं, जिसकी वजह से हिन्दोस्तान अपने पड़ौसी देशों के साथ विनाशकारी जंग में फंस सकता है।
कश्मीरी लोगों की समस्याओं का स्रोत बड़े सरमायदारों की हुकूमत है। इन हुक्मरानों को सिर्फ अपनी दौलत की फिक्र है, लोगों की खुशियों की नहीं। आज का हिन्दोस्तान विभिन्न राष्ट्रों के लिए एक कारागार जैसा है। जब तक बड़े सरमायदारों की हुकूमत बरकरार रहेगी, तब तक कश्मीरी लोगों या देश में कहीं भी बसे लोगों की समस्याएं ख़त्म नहीं होंगी।
हमारे देश के मज़दूरों, किसानों और सभी दबे-कुचले लोगों को एकजुट होकर, सरमायदारों की हुकूमत की जगह पर अपनी हुकूमत स्थापित करने के लिए संघर्ष करना होगा। अपने हाथों में राज्य सत्ता लेकर, हम देश की अर्थव्यवस्था को नयी दिशा में मोड़ सकेंगे, ताकि सबकी रोज़ी-रोटी और खुशहाली सुनिश्चित हो, न कि पूंजीपतियों के मुनाफ़े अधिक से अधिक हों।
इस वर्तमान राज्य, जो पूंजीवाद की विरासत है, की जगह पर हमें एक नए राज्य की स्थापना करनी होगी, जो एक नए संविधान पर आधारित होगा और जो यह सुनिश्चित करेगा कि संप्रभुता लोगों के हाथ में हो। हिन्दोस्तानी राज्य को रज़ामंद राष्ट्रों और लोगों के स्वेच्छापूर्ण संघ के रूप में पुनर्गठित करना होगा, जिसमें सभी घटकों को आत्म-निर्धारण का अधिकार होगा। कश्मीर की समस्या के स्थाई समाधान के लिए इस प्रकार के लोकतान्त्रिक नव-निर्माण की ज़रूरत है।
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