भारतीय किसान यूनियन (बी.के.यू.) के झंडे तले संगठित होकर, 2 अक्तूबर को हजारों किसान दिल्ली की सीमा पर पहुंचे। 23 सितंबर को हरिद्वार से इन किसानों ने किसान क्रांति यात्रा शुरू की थी जिसका समापन उन्होंने दिल्ली में किया। आंदोलन करने वाले किसानों ने किसान घाट तक प्रदर्शन करने और अपनी मांगों को उजागर करने के लिए किसान घाट में एक सार्वजनिक बैठक आयोजित करने की अपनी योजना की घोषणा की थी। उन्होंने केंद्र सरकार के मंत्रियों के साथ बातचीत करने का प्रयास भी किया, ताकि वे अपनी दीर्घकालिक मांगों को पूरा करने के लिए सरकार पर दबाव डाल सकें और अधिकारियों को अपनी मांगों का ज्ञापन दे सकें।
परन्तु किसानों को उत्तर प्रदेश-दिल्ली की सीमा पर रोककर, राजधानी में प्रवेश करने से रोक दिया गया। प्रदर्शन को वाटर कैनन, आंसू गैस और लाठियों से लैस पुलिस ने रोक दिया। पुलिस ने लाठियों और वाटर कैनन का प्रयोग करके उनपर क्रूरता से हमला किया और विरोध करने वाले किसानों को तितर-बितर करने के लिए कई आंसू गैस के गोले दागे। इसमें कई किसान गंभीर रूप से घायल हो गए।

लेकिन विरोध करने वाले किसानों ने झुकने से इनकार कर दिया। गृहमंत्री के नेतृत्व में, केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल ने किसानों के नेताओं से मुलाक़ात की और उन्हें ‘आश्वासन दिया‘ कि उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा। लेकिन बी.के.यू. ने सरकार के इन आश्वासनों को ख़ारिज़ कर दिया। बी.के.यू. के अध्यक्ष, नरेश टिकैत ने स्पष्ट रूप से कहा: “लेकिन यह काफ़ी नहीं है। सरकार ने कहा है कि हमारी मांगों पर विचार किया जाएगा। किसान इतने सालों से पीड़ित हैं और सरकार अभी भी हमारी मांगों पर सिर्फ विचार करने जा रही है। यह विरोध किसी भी हाल में ख़त्म नहीं होगा।”
किसानों ने किसान घाट तक यात्रा करने और केंद्र सरकार के अधिकारियों को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपने की अनुमति के लिए अपनी लड़ाई जारी रखी। उन्होंने उत्तर प्रदेश-दिल्ली सीमा पर शिविर लगाकर रात बिताई और वहीं अपना भोजन बनाया।
विरोध करने वाले किसानों की एकता और दृढ़ संकल्प ने आखिर में अधिकारियों को मजबूर कर दिया। 3 अक्तूबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आने वाले 2018-19 की रबी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की घोषणा की। मंत्रिमंडल ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में गेहूं के लिए 105 रुपये प्रति क्विंटल, मसूर दाल के लिए 225 रुपये प्रति क्विंटल, चनों के लिए 220 रुपये प्रति क्विंटल, जौ के लिए 30 रुपये प्रति क्विंटल, सफेद सरसों और सरसों के लिए 200 रुपये प्रति क्विंटल और केसर के लिए 845 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की घोषणा की।
राज्य की नीतियों के ख़िलाफ़, पूरे देश में किसान लड़ रहे हैं। राज्य की इन नीतियों की वजह से एक तरफ कृषि-व्यापार के धंधे में शामिल बड़े इजारेदार निगमों के लिए मुनाफ़े बढ़ रहे हैं और दूसरी तरफ किसानों की पूरी तरह से बर्बादी हो रही है। पिछले 18 महीनों में देश के विभिन्न हिस्सों के लाखों-लाखों किसानों के कम से कम 4 बड़े आंदोलन हुए हैं।
किसान राज्य से मांग कर रहे हैं उनके उत्पादों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सुनिश्चिति खरीदी की जाये। वे चाहते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन की लागत का कम से कम 1.5 गुना ज्यादा हो। वे एक बार के लिये बिना शर्त के पूरी कर्ज़ माफ़ी की मांग कर रहे हैं। वे फसल के नुकसान के लिए बीमा के माध्यम से मुआवजे़ की मांग कर रहे हैं। सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को बड़ी धूम-धाम के साथ शुरू किया है। परन्तु ख़बरों के अनुसार बैंक और बीमा कंपनियां मिलीभगत करके कई राज्यों में किसानों को अपने बीमा मुआवज़ों से वंचित कर रही हैं।
इन मांगों के साथ, बी.के.यू. डीजल की क़ीमत में कटौती की मांग भी कर रहा है, जो पिछले एक साल में 30 प्रतिषत से अधिक हो गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना क्षेत्र में बी.के.यू. का गढ़ है और वह यह भी मांग कर रहा है कि गन्ने का बकाया भुगतान, जो लगभग 10,000 करोड़ रुपये है, बिना किसी देरी के किसानों को दिया जाये।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी आंदोलन करने वाले किसानों पर बर्बर पुलिस हमले की निंदा करती है। किसानों की मांगें पूरी तरह से न्यायसंगत हैं और उन्हें मज़दूर वर्ग और लोगों का पूरा समर्थन प्राप्त है।
- Log in to post comments