ऑल इंडिया किसान सभा ने 4 नवंबर को यह घोषणा की कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 28-30 नवंबर को ‘किसान प्रदर्शन’ आयोजित किया जायेगा। किसानों की चली आ रही मांगों को पूरा करने के लिये सरकार पर दबाव डालने के मक़सद से यह प्रदर्शन आयोजित किया जायेगा। यह प्रदर्शन आल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति (ए.आई.के.एस.सी.सी.) के झंडे तले किया जायेगा। ए.आई.के.एस.सी.सी. देशभर के 260 किसान संगठनों का समूह है जो किसानों की मांगों के संघर्ष को आगे ले जा रहा है।
‘लांग मार्च’ दिल्ली से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित किसी जगह से संसद तक होगा। यह 2018 में कुछ महीने पहले आयोजित किये गये ‘नाशिक-मुम्बई लांग मार्च’ की तरह किया जायेगा।
यह मांग ज़ोर पकड़ रही है कि संसद का 21 दिन का विशेष संयुक्त सत्र किया जाये जिसमें किसानों की समस्याओं की सुनवाई की जाये। दो विधेयक - कर्ज़भार से किसानों की मुक्ति (2018) और कृषि सामग्रियों के लिये सुनिश्चित लाभदायक न्यूनतम समर्थन मूल्य का किसानों का अधिकार (2018) - संसद में पेश हो चुके हैं और उन पर चर्चा होनी है।
किसानों का यह सर्व हिन्द प्रदर्शन देशभर में किसानों के बार-बार किये गये प्रदर्शनों तथा सितंबर 2018 जैसे कई सर्व हिन्द प्रदर्शनों के बाद हो रहा है। इन प्रदर्शनों में एक मुख्य मुद्दा यह रहा है कि भाजपा सरकार ने 2014 में चुनावों के समय किसानों से यह वादा किया था कि 22 निर्धारित फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में वृद्धि की जायेगी और गन्ना के लिये लाभदायक दाम तय किया जायेगा। परन्तु ये वादे झूठे साबित हुये हैं। जबकि कृषि की लागत के दाम कई गुना बढ़ गये हैं, किसानों को अपने उत्पादों के लिये उचित दाम नहीं मिल रहे हैं।
प्रदर्शन के आयोजकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि कृषि संकट अब “बहुत गहरा” हो गया है। “...एक के बाद दूसरी सरकार गांवों के विनाश और किसानों की बेइंतहा तबाही को देखती रही है परन्तु किसानों की दुर्दशा को कम करने के लिये अब तक शायद ही कुछ किया गया है। सरकारें बीते 20 वर्षों में 3,00,000 से कहीं ज्यादा किसानों की आत्महत्याओं समेत हमारी बढ़ती कंगाली के मूकदर्शक बनकर बैठी रही हैं”।
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